बशीर बद्र की सम्पूर्ण। आप इस पर अप्प से बशीर बद्र की सम्पूर्ण विस्तारपूर्वक पढ़ सकते हैं। ये ग़ज़ल का उल्लासपूर्ण प्रकार है।
साहित्य और संगीत नाटक अकादमी के लिए योगदान के लिए बदर को 1999 में पद्म श्री पुरस्कार मिला है। उन्हें 1999 में उनके कविता संग्रह "आस" के लिए उर्दू में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला है। बशीर बद्र का जन्म 15 फरवरी, 1935 को अयोध्या में हुआ था। उन्होंने बी.ए. एम.ए. और पीएचडी। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में और बाद में मेरठ कॉलेज, मेरठ के विभाग के प्रमुख के रूप में 17 साल तक काम किया। वह फारसी, हिंदी और अंग्रेजी भी जानता है। कहा जाता है कि उन्होंने सात साल की उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया था।
उनके पास ग़ज़लों के सात संग्रह हैं: 'इक़ई', 'छवि', 'आमद', 'आहट', 'कुल्लियाते बशीर बद्र', आदि। उनके पास साहित्यिक आलोचना की 2 पुस्तकें भी हैं, 'आज़ाद के बुरे उर्दू ग़ज़ल का तानकीदी मुतला'। और 'बिसविन सादी में ग़ज़ल'। उन्होंने देवनागरी लिपि में उर्दू ग़ज़लों का एक संग्रह भी निकाला, जिसका शीर्षक था 'उजाले आप याद करो'।
बशीर बद्र शायरी और ग़ज़लों का संग्रह
❤️ आंखें पुरुष रूहा दिल पुरुष यूं करे नहीं देखा
❤️ अहान पुरुष धालती जगेगी इकिकिसविन सादी
❤️ आब केसे छें केसे दुहुनदा करेन
❤️ अब अनगरोन के लब चुम के तो जगेगे
❤️ अबी तराफ न निगाह कर मेन गजल की पलकें संवर लुन
❤️ अच्चा तम्हारे शाहर का दस्तूर हो गया
Ala आगर तलैश करुं कोइ मिल ही जाईगा
A अगार यकिन नहीं एआता से आजमाए मुजे
En अज़मातेन सब तेरी कुहुदाई की
Ta बडे तजिरों की सताई हुइ
❤️ होना-तहासा सी ला-haउबली हंसी
❤️ भीगी हुई आंखें का तू मंजर ना मिलेगा
K चाई की प्याली पुरुष नीली गोली घोली
❤️ चमक राही है परों पुरुष उदान की केहसबु
❤️ पतला आदमी इक तस्वीर छपी थई आन बसी है आंखें मर्द
A दुआ करो की तु पाड़ा सदा हमरा लागे
Cha फलक सी चंद सितारोन से जमाना लीना है
❤️ गजलन का हुनर अपना आपन को सिखावें
❤️ घर से निकले अगर हम भी जानेंगे
On हंसी मासूमुँ सी बाछों की नकल पुरुष इबादत सी